गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

दिल्ली पुलिस की लुटेरों से हार्दिक अपील

दिल्ली के प्रिय लुटेरों
सादर प्रणाम
आप कैसे हैं..आशा है धंधा मजे में चल रहा होगा...आपकी कामयाबी के किस्से पूरे गृहमंत्रालय में गूंज रहे हैं..गृहमंत्री भी बेहद खुश हैं..आपकी ही वजह से लोग पुलिस को याद करते हैं...आप हैं तो हम भी बने हुए हैं। ये आपका ही बड़प्पन है कि अप ताबड़तोड़ वारदातें कर हमें धन्य करते आ रहे हैं। आपकी ही बदौलत सुरक्षा के नाम पर हमें बड़ा बजट मिलता है..उसी से हमारी होली दिवाली मनती है। वरना हमें मिलता ही क्या है। अभी नए थाने बनाए गए हैं, सब आपकी ही कृपा से हो पाया है। आप शांत बैठे रहते तो भला नए थानों की सुध किसे आती, आपने जब हमारे लिए इतना किया है तौ थोड़ा और कर दीजिए। आपका और हमारा तो चोली दामन का साथ है। उम्मीद है आप हमारी भावनाएं समझेंगे। माजरा ये है कि दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स होने वाले हैं। सरकार जल्दबाजी में आफत मोल ली है। सांसे फूली हुई है, लेकिन मना नहीं हो रही। पानी काफी गुजर चुका है। इसलिए खेल तो कराने ही होंगे। बाकी तो सब सेटिंग हो जाएगी। बस आपका सहयोग चाहिए। दरअसल गेम्स में भाग लेने फिरंगी भी आएंगे। उन्हें दिल्ली की संस्कृति के बारे में इतनी तमीज नहीं हैं कि वो आपको समझें। वो आएंगे तो निगाहें आसमान में होंगी..इसलिए एमसीडी सारे गड्ढे बंद करने में जुट गई है...वहां तो मामला संभल जाएगा, लेकिन बस थोड़ा आपकी ही तरफ से मुश्किलें आ रही हैं..यदि आप भी सहयोग करें तो हम भी फिरंगियों के सामने कॉलर उंचा कर चल सकेंगे। गृह मंत्रालय ने आपसे वार्ता करने का जिम्मा हमें ही सौंपा है। आपसे हमारी अच्छी जो पटती है। आप बस इतना कर दीजिए, कॉमनवेल्थ गेम्स होने तक अपनी बिरादरी के लोगों को संयम बरतने का सर्कुलर जारी कर दें। मसलन चोरी, छेड़छाड़, जेबतराशी, बलात्कार और लूटपाट जैसे काम-धंधों पर अगर कुछ दिनों के लिए विराम लग जाए तो...हमारी दोस्ती और गाढ़ी हो जाएगी। वैसे गृह मंत्रालय की ये योजना सूखी नहीं है..इसमें आपके हितों का पूरा ख्याल रखा गया है। अगर आप हमारे प्रस्ताव को मानते हैं तो आपको पूरे एक साल का एकमुश्त भत्ता दिया जाएगा। इस मामले में ट्रैफिक पुलिस को सक्रिय कर दिया गया है...धड़ाधड़ चालान किये जा रहे हैं। आप हमारी बात समझ रहे हैं ना..देसी लोग के साथ आप सबकुछ करते हैं..कभी हमने आपको रोका या टोका। लेकिन फिरंगियों की बात जरा अलग है..इन्हें जरा भी आंच आती है तो एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे खाली बैठे संगठन भी नींद से जाग उठते हैं। अंग्रेजों को अगर आपकी प्रतिभा से दो-चार होना पड़ा तो बात गृह मंत्रालय तक आएगी...बस इसी बात का हमे डर है..वैसे तो आप जानते ही हैं कि गेम्स की तैयारियों को लेकर सारे मंत्रालयों पर उंगलियां उठ रही हैं...हम नहीं चाहते, हम या हमारे मंत्रालय पर भी कोई उंगली उठाए। इसलिए हमे गुप्त रुप से आपको मनाने के लिए कहा गया है। हमे उम्मीद है कि आप कुछ वक्त के लिए अपना मिशन ड्रॉप कर हमे सहयोग देंगे। हम आपसे निजी रुप से वादा करते हैं गेम्स के बाद आपको अच्छा माहौल प्रदान किया जाएगा। आप अपनी मर्जी करना और गेम्स खत्म होने के बाद राहत की सांस लेते हुए लंबी तान के सो जाएंगे
आपकी अपनी
दिल्ली पुलिस

बुधवार, 30 दिसंबर 2009

कल पढ़ें ! कब मिलेगा राठौर को इंसाफ ?

जानिए मेरे बारे में मीठी हकीकत

जानिए और कुछ सीखिए...मेरा बचपन बेहद बदतमीजी में गुजरा...बचपन से ही गाली देने और दूसरों के कपड़े फाड़ने का शौक था। घरवालों ने मेरे हुनर को पहचाना और गली मोहल्ले में अपना सिक्का जमाने की छूट दे दी। उम्र बढ़ती गई और प्रतिभा निखरती गई...कुछ समाजसेवियों ने मुझे स्कूल भिजवाने की लाख साजिशें रची लेकिन कामयाब नहीं हो पाए...घसीटते हुए स्कूल की चौखट तक ले भी गए लेकिन नाम नहीं लिखवा पाए...उस समय जोश था..जिस्म में ताकत थी...तब लिखना नहीं सीखा था...मीडिया से वास्ता नहीं पड़ा था...हेडर और क्रोमा से लगाव नहीं था...इसलिए हेडक नहीं होता था...हेडक करता था। 15 को होते होते मैने खूब नाम कमाया..जिस गली से गुजरता लड़कियां रास्ता बदल लेतीं...सम्मान हो तो ऐसा। कहते हैं मेहनत से कुछ भी करो बेकार नहीं जाता..यही मैने सीखा और इसी की बदौलत थाने तक मेरी हाजिरी लगने लगी। मोहल्ला सुधार समिती को अब मेरी सुध आ गई थी...15 अगस्त को मेरा सार्वजनिक अभिनंदन किया गया। मुझे फूलों से लाद दिया गया...सबने एक सुर में कहा आप हमारे मोहल्ले की शान हैं...कुछ बड़ा करो, ये मोहल्ला तुम्हारे लायक नहीं है..यहां से निकल जाओ...इतना प्यार, इतना दुलार। मैं भावुक हो गया। मुझे लगा, मुझे जरुर कुछ बड़ा करना चाहिए..मैने कल्याण मंत्रालय में अर्जी दे दी और महज तीन दिन में मुछे तिहाड़ जेल में इंटर्नशिप करने का ऑफर आ गया। मैने मौके को भुनाया और पूरे तीन साल तिहाड़े में काटे । वहां भी मैं छा गया...मैने कई कैदियों के सिर फोड़े, कई पुलिसवालों की वर्दियां फाड़ी..आला अफसरों को भी खूब नाच नचवाया। जेल में सब मेरे आदर्शों को अपनाने लगे थे..कैदियों को लगने लगा था उनका मसीहा आ गया। मैं पप्पु यादव, रोमेश शर्मा, अबु सलेम जैसा बनने ही वाला था, लेकिन अचानक मेरे जीवन में सुनामी आ गई और मैं मधु कोड़ा जैसा करियर बनाने से चूक गया। वहां एक ऐसा अफसर आया जिसने मेरे पैरों में किताबों की बेड़ियां डाल दी...मुझे कई-कई घंटे पढ़ाया जाता..लिखने के लिए दिया जाता..मैं चिखता चिल्लाता लेकिन मेरी आवाज जेल के दीवारों से टकराकर लौट आती। जब सफेदपोश जेल में आते तो उन्हें बताया जाता देखो इसे दुनिया में जीने के काबिल बना दिया है। अब ये गरजता नहीं है..चुप रहता है। इसके कानों में हमने ज्ञान के अक्षर पिघलाकर डाले हैं। इसे ऐसी बेड़ियों में जकड़ा है जिससे ये ताउम्र बाहर नहीं आ सकेगा। जेल से मैं 20 साल का होकर बाहर आ गया। बाहर आते ही मुछे एक अखबार में तड़पने के लिए छोड़ दिया गया। वहां खूब लिखने को देते...और खूब पढ़ने को कहते। मैं अंदर ही अंदर घुट रहा था..कोई मेरे दर्द को समझ नहीं सका..वक्त की मार पड़ी और मेरे गले में प्रेस का बिल्ला टांग दिया गया। लेकिन दोस्तों और मोहल्लेवालों ने मेरा साथ नहीं छोड़ा। खूब सहानुभूति दिखाई..मुझ पर तरस खाया। कई की तो आंखे छलछला उठी..बताओ क्या से क्या बना दिया। ये भी कोई जिंदगी है। एक वो दिन था जब मैं खुद खबर बनता था, आज खबर बनाता हूं..ऐरों-गैरों की। इसके बदले मिलता ही क्या है। सिर्फ चूल्हा चल पाता है..लेकिन इसमें वो मजा कहां...जब तक लोगों के दिल ना फूंको गरमाई कहां आती है।
आपका ही
सर शोभाराम

नया साल आ गया है, होश ना खोएं..ये हर साल आता है, अभी तक कुछ बदला क्या?